अरुण कुमार
भारतीय शेयर बाजार में बहार दिख रही है। सूचकांक लगातार ऊंचाई का रिकॉर्ड बना रहा है। इससे निवेशक काफी ज्यादा खुश हैं। फरवरी से अब तक तकरीबन 30 शेयरों ने शत-प्रतिशत रिटर्न दिया है। निवेशकों के उत्साह का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चालू वित्त वर्ष के शुरुआती दो महीनों में ही 44.7 लाख खुदरा निवेशकों के खाते खुले हैं। तो क्या रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचा शेयर बाजार भारतीय अर्थव्यवस्था की उम्मीद है?
इस सवाल का जवाब तलाशने से पहले हमें शेयर बाजार के गणित को समझना होगा। इसमें किसी कंपनी के शेयर दो वजहों से चढ़ते-उतरते हैं। पहली, उस कंपनी की मौजूदा दशा क्या है? और दूसरी, आने वाले समय में वह कैसा प्रदर्शन करेगी? यह तो तय है कि देश की अर्थव्यवस्था अभी 2019 के स्तर पर भी नहीं पहुंच सकी है। इसलिए जाहिर तौर पर लोग सूचीबद्ध कंपनियों के आगे बेहतर करने की उम्मीद में ही निवेश कर रहे हैं। इस सोच के वाजिब कारण हैं।
मसलन, अभी निवेशक अधिकांशत: टेक्नोलॉजी, ई-कॉमर्स, ई-बैंकिंग जैसी कंपनियों में निवेश कर रहे हैं। चूंकि हमारी मांग में बदलाव आया है और हम बगल की दुकान से नहीं, बल्कि ऑनलाइन खरीदारी ज्यादा करने लगे हैं, इसलिए इन कंपनियों पर निवेशकों का भरोसा बढ़ा है। इसी के कारण कुछ कंपनियों के आईपीओ आश्चर्यजनक रूप से काफी ज्यादा पर खुले। अमेजन, फेसबुक जैसी कंपनियों के इतिहास ने भी निवेशकों को इन जैसी कंपनियों पर पैसा लगाने को प्रोत्साहित किया।
मगर सवाल यह है कि जब अर्थव्यवस्था की हालत खास्ता हो, तब निवेशकों की चांदी क्यों है? दरअसल, अभी बाजार में लिक्विडिटी, यानी तरलता (पूंजी) ज्यादा है। दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं कोरोना से लड़ रही हैं, इसलिए तमाम देशों के केंद्रीय बैंकों ने अपने-अपने यहां लिक्विडिटी बढ़ाई है।
व्यापारिक-वर्ग के हाथों में पैसे आने से वे निवेश की सोचने लगे हैं। चूंकि रियल एस्टेट में ज्यादा रिटर्न नहीं है, और बैंकों में भी ब्याज दरें कम कर दी गई हैं, इसलिए अच्छे रिटर्न की चाहत में शेयर बाजार उनके लिए सबसे मुफीद बन गए हैं। भारतीय शेयर बाजार इसलिए भी निवेशकों को लुभा रहे हैं, क्योंकि भारत एक बड़ा बाजार है। नतीजतन, यहां उन कंपनियों के दाम भी चढ़ने लगे हैं, जिनका भविष्य बहुत ज्यादा साफ नहीं दिखता। यही वह बात है, जिससे हमें चिंतित होना चाहिए।
शेयर बाजार में उन कंपनियों के निवेशक मुनाफे में रहते हैं, जो भविष्य में अच्छा रिटर्न देने का भरोसा देती हैं, लेकिन उन कंपनियों के निवेशकों को नुकसान हो सकता है, जिनके बदहाल होने की आशंका अधिक है। दिक्कत यह है कि किसी कंपनी का भविष्य पढ़ पाना आसान नहीं होता। कुछ कंपनियों का तो ठीक-ठीक आकलन किया जा सकता है, लेकिन ज्यादातर शेयरों की खरीद-बिक्री काफी कुछ अनुमान पर आधारित होती है।
इसमें जो निवेशक बाजार को पढ़ सका, वह तो मुनाफे में रहेगा, लेकिन जो ठीक-ठीक अनुमान नहीं लगा सकता, उसे घाटा हो सकता है। एक दिक्कत यह भी है कि बाजार के चढ़ने से शेयर का मूल्य-आय अनुपात (कंपनी के शेयर का मूल्य और शेयर से अर्जित आय का अनुपात) बढ़ जाता है। अभी भारतीय शेयर बाजार का यही हाल है। इसमें सबसे बड़ा खतरा यह है कि जब यह टूटेगा (जिसकी आशंका ज्यादा है), तो निवेशकों को नुकसान होगा।
मौजूदा तेजी के कारण निवेश के असली क्षेत्र पिछड़ सकते हैं। ये वे क्षेत्र हैं, जो किसी भी अर्थव्यवस्था की बुनियाद होते हैं। इनके रिटर्न तुलनात्मक रूप से कम होते हैं। इसीलिए लोग अभी इनमें निवेश करने से बच रहे हैं। इसका पैसा तुरंत लाभ देने वाली कंपनियों के खाते में जा रहा है, जिससे अर्थव्यवस्था को नुकसान हो सकता है। जैसे, यदि सुनहरे भविष्य को देखते हुए टेक्नोलॉजी कंपनियों में हम ज्यादा निवेश करते हैं, तो हमें बेशक रिटर्न ज्यादा मिले, लेकिन इससे रोजगार सृजन का परिदृश्य प्रभावित हो सकता है, यानी खतरा दोतरफा है- वास्तविक निवेश न होने से अर्थव्यवस्था कमजोर होगी और दूसरा, रोजगार प्रभावित होगा।
एक और बात, हमारे शेयर बाजार में कॉरपोरेट सेक्टर का प्रभुत्व है। ऐसे उद्योगपतियों की संख्या पांच से दस लाख के करीब है। मगर देश की कुल आबादी में इनकी हिस्सेदारी महज 0.1 फीसदी है। साफ है, शेयर बाजार के चढ़ने से ज्यादा फायदा इसी वर्ग को होगा। यही अब तक होता रहा है, जबकि अमेरिका जैसे देशों में खुदरा निवेशकों की संख्या ठीक-ठाक है। इसके कारण शेयर बाजार का फायदा वहां कई वर्गों में बंटता है।
अपने यहां एक बड़ी आबादी शेयर बाजार के फायदे से वंचित रह जाती है। फिर, शेयर बाजार जब टूटता है, तो बड़े निवेशक जैसे-तैसे उसे सह जाते हैं, लेकिन कम पूंजी होने के कारण खुदरा निवेशकों को नुकसान अधिक होता है। हर्षद मेहता केस इसका बड़ा उदाहरण है।
इन सबसे बचने के लिए सरकार को कुछ प्रयास करने चाहिए। मुमकिन हो, तो उसे छोटी अवधि वाले पूंजीगत लाभ के टैक्स बढ़ा देने चाहिए। इतना ही नहीं, शेयर बाजार में लेन-देन, यानी ट्रांजेक्शन पर भी टैक्स लगाया जाना चाहिए। इनसे भेड़चाल में होने वाली खरीद-बिक्री हतोत्साहित होगी। एकाध दिन में ही अच्छा-खासा रिटर्न पाने की उम्मीद में बड़ा निवेश करने वाले निवेशक भी अपने पांव पीछे खींचने को मजबूर होंगे। इससे न केवल सरकार का खजाना बढे़गा, बल्कि बुनियादी ढांचों के विकास पर वह कहीं ज्यादा रकम खर्च कर सकेगी।ऐसा करना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि विदेशी बाजारों में कोई हलचल होते ही भारतीय शेयर बाजार की यह तेजी|
मंद पड़ सकती है। विदेशी निवेशकों के पीछे हटने की शुरुआत इसका एक बड़ा संकेत है। इस समय लिक्विडिटी अधिक होने की वजह से शेयर बाजार में लोग पैसे तो लगा रहे हैं, लेकिन जब उनके हाथ तंग होंगे, तो वे अपनी पूंजी निकालने से हिचकेंगे भी नहीं। ऐसी स्थिति में बाजार बिखरने लगेगा। यानी, आज का बुलबुला दीर्घावधि में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। नीति-नियंताओं को इसी पर ध्यान देना चाहिए।
लेख पहली बार लाइव हिन्दुस्तान में छपा: कहीं बुलबुला न बन जाए यह तेजी 04 अगस्त, 2021 को|
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लेखक के बारे में

प्रोफेसर अरुण कुमार, अर्थशास्त्री और मैल्कम एस अदिशेशिया अध्यक्ष प्रोफेसर, सामाजिक विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली|
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