अरुण कुमार

कोरोना महमारी की वजह से पैदा हुए आर्थिक संकट से क्या हम तेजी से उबरने लगे हैं? गुरुवार को बंबई शेयर सूचकांक आश्चर्यजनक रूप से 50 हजार के आंकड़े के पार चला गया। अपने 145 साल के इतिहास में पहली बार बीएसई ने इस ऊंचाई को छुआ है। दूसरी तरफ, रिजर्व बैंक का मानना है कि देश की जीडीपी दर सकारात्मक होने के करीब है, और वित्त वर्ष 2020-21 की तीसरी तिमाही में यह बढ़कर 0.1 फीसदी हो सकती है।

सरकार यह भी मान रही है कि चालू वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था में 7.7 फीसदी की ही गिरावट हो सकती है, जो पहले 10 फीसदी आंकी गई थी। जाहिर है, ये आंकड़े किसी को भी सुकून दे सकते हैं। मगर इन्हीं आंकड़ों के आधार पर पूरी अर्थव्यवस्था को सेहतमंद बता देना भ्रम पैदा करने जैसा होगा। सबसे पहले बात शेयर बाजार की। यह लोगों की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करता है।

अपने यहां अब भी महज तीन फीसदी आबादी इक्विटी म्यूचुअल फंड में पैसे लगाती है। इसकी तुलना यदि अमेरिका जैसे देश से करें, तो वहां शेयर बाजार में लगभग आधी आबादी निवेश करती है।  दिक्कत यह भी है कि अपने यहां 0.1 फीसदी कारोबारी ही पूरे शेयर बाजार पर हावी हैं। ये वे लोग हैं, जिनकी कंपनियां अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं। जैसे कि तकनीक और प्रौद्योगिकी से जुड़ी कंपनियां, एफएमसीजी यानी उपभोक्ता वस्तु बनाने वाली कंपनियां आदि। इसीलिए शेयर बाजार की इस उछाल को आम लोगों की आर्थिक तरक्की से नहीं जोड़ सकते। सेंसेक्स की इस तेजी की एक वजह और भी है।

अब बैंक जैसे वित्तीय संस्थानों में ब्याज कम हो गए हैं। इनमें ब्याज दरें लगातार घटती गई हैं, जिसके कारण निवेशक नए विकल्प तलाश रहे हैं। रियल एस्टेट उनके निवेश का एक रास्ता जरूर था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से उसमें भी मंदी छाई हुई है। अच्छी बात है कि कोरोना संकट को देखते हुए अमेरिका, यूरोप जैसे देशों के बाजार में वहां के केंद्रीय बैंकों ने तरलता बढ़ाई है। अपने यहां भी नौ लाख करोड़ रुपये की नकदी बाजार में आने की बात कही जा रही है।

चूंकि बैंकों की हालत अभी खस्ता है और रियल एस्टेट से आमद कम, इसलिए स्वाभाविक ही शेयर बाजार की तरफ लोगों का रुझान बढ़ा है। जनवरी 2020 की तुलना में भी हमारी अर्थव्यवस्था अब भी लगभग 10 फीसदी कम है। लॉकडाउन हटने के बाद कुछ ही कंपनियां खुद को संभाल सकी हैं। विमानन उद्योग, पर्यटन उद्योग, होटल-रेस्तरां आदि की हालत तो अब भी खस्ता है।

आकलन यह है कि ऐसी स्थिति अभी एक-डेढ़ साल तक बनी रहेगी। इसका सीधा मतलब है कि इतने दिनों तक बाजार में भी अनिश्चितता बनी रहेगी। उम्मीद जरूर कोरोना टीकाकरण अभियान से है, और माना जा रहा है कि जैसे-जैसे इसमें गति आती जाएगी, अर्थव्यवस्था में सुधार दिखने लगेंगे। मगर टीकाकरण की रफ्तार को देखकर यही कहा जा सकता है कि देश की 60 फीसदी आबादी को टीका लगने में एक साल का वक्त लग जाएगा। यानी बाजार अभी अनिश्चितता में फंसा रहेगा।

ऐसे में, शेयर बाजार की यह तेजी इसलिए भी छलावा साबित हो सकती है, क्योंकि अब भी यह ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता कि कोविड-19 संक्रमण की नई लहर अपने यहां नहीं आएगी। कई देशों में कोरोना संक्रमण बढ़ने पर फिर से लॉकडाउन लगाया गया है। इसलिए जब तक हम ‘हर्ड इम्यूनिटी’ विकसित नहीं कर लेते, बाजार के स्थिर होने का दावा नहीं कर सकते।

अपने यहां साल 2007 के दिसंबर में सेंसेक्स पहली बार 21 हजार के पार गया था। उस वक्त दुनिया भर में जबर्दस्त तेजी थी। मगर सब-प्राइम संकट की वजह से जब अमेरिका में प्रॉपर्टी बाजार का गुब्बार फूटा, तो पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था डूब गई। हर देश के शेयर बाजार 50 फीसदी से भी ज्यादा गिर गए। अपने यहां भी तब सूचकांक घटकर 9,000 पर आ गया था।

1990 के दशक के हर्षद मेहता घोटाले ने भी आम लोगों की जमा-पूंजी को डूबा दिया था। इसीलिए शेयर बाजार को असल अर्थव्यवस्था से अलग माना जाता है। रही बात सकल घरेलू उत्पाद की, तो इसके तिमाही आंकड़े लगातार अच्छी तस्वीर दिखा रहे हैं। यह वाजिब भी है। हमने अब अपने बाजार पूरी तरह से खोल दिए हैं। लॉकडाउन के दौरान देशव्यापी बंदी की जो स्थिति थी, वह अब पूरी तरह से खत्म हो गई है।

ऐसे में, उत्पादन का बढ़ना बिल्कुल स्वाभाविक है, जिसका असर बाजार पर भी दिख रहा है और आंकड़ों में भी। मगर सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़ों में मुख्यत: संगठित क्षेत्र को शामिल किया जाता है। इसमें कृषि को छोड़कर किसी असंगठित क्षेत्र की गिनती नहीं होती। हमारी अर्थव्यवस्था में 14 फीसदी हिस्सा कृषि का है, जबकि 31 प्रतिशत के करीब हिस्सेदारी गैर-कृषि असंगठित क्षेत्र की है।

वित्तीय संस्थाएं यह मान बैठती हैं कि संगठित क्षेत्र की तरक्की के साथ-साथ असंगठित क्षेत्र भी समान गति से आगे बढ़ते हैं। वास्तव में, यह सोच गलत है। यदि असंगठित क्षेत्र को भी जीडीपी के आंकड़ों में शामिल कर लें, तो अब भी हमारी अर्थव्यवस्था नकारात्मक 10 फीसदी होगी और उसकी सालाना गिरावट निगेटिव 29 फीसदी।

यह भी इस आधार पर अंदाजा लगाया गया है कि जनवरी में पांच फीसदी की गिरावट के बावजूद फरवरी में हमारी अर्थव्यवस्था साल 2019 के स्तर पर आ जाएगी। असंगठित क्षेत्रों की हालत कितनी बिगड़ी हुई है, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि एक महीने पूर्व सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग की 20 फीसदी इकाइयां अपना कर्ज वापस करने में सक्षम नहीं थीं।

इसका अर्थ है कि उनके पास पैसे नहीं हैं, जबकि असंगठित क्षेत्र की बुनियाद पर ही संगठित क्षेत्र आगे बढ़ सकता है। साफ है, दो महीने की तुलना में अभी जीडीपी दर बेशक ज्यादा है, लेकिन साल 2019 के बनिस्बत यह अब भी काफी कम है। लॉकडाउन के समय हमारे यहां उत्पादन में लगभग 75 फीसदी की गिरावट आई थी, और यह अब भी 10 फीसदी कम है। इसलिए अगले वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में हम अप्रत्याशित वृद्धि भी देख सकते हैं। लेकिन इसको अर्थव्यवस्था की सही तस्वीर तो नहीं ही कहेंगे।

लेख पहली बार लाइव हिन्दुस्तान में छपा: शेयरों में उछाल से मामूली सुकून 22 जनवरी 2021 को

लेखक के बारे में

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प्रोफेसर अरुण कुमार, अर्थशास्त्री और मैल्कम एस अदिशेशिया अध्यक्ष प्रोफेसर, सामाजिक विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली|

Photo courtesy: Google Images

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