इम्प्री टीम
यह पैनल चर्चा विशेषकर भारतीय गाँवों में कोविड की दूसरी लहर के मद्देनज़र विभिन्न पेशेवरों के कार्य करने के अनुभवों से संबद्ध था, जो की “प्रभाव एवं नीति अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली” के सेंटर फॉर हैबिटेट, अर्बन एंड रीजनल स्ट्डिज (CHURS) एवं झाँसी(उत्तर प्रदेश राज्य) के “परमार्थ सेवी संस्था” के संयुक्त प्रयासों द्वारा 1 9 मई , 2021 को आयोजित की गयी। यह चर्चा संस्थान द्वारा देश के सम्पूर्ण राज्यों के लिए आयोजित की जा रही “पैनल चर्चा” की एक अन्य कड़ी ही थी, जिसका केन्द्रीय बिन्दु -उत्तर प्रदेश राज्य की ग्रामीण वास्तविकता एवं उससे संबंधित मुद्दे रहें ।

इस कार्यक्रम की शुरुआत “प्रभाव एवं नीति अनुसंधान संस्थान” की रीतिका गुप्ता( सहायक निदेशिका) ने किया। साथ ही, डॉ सिमी मेहता ने इस पैनल चर्चा की पृष्ठभूमि तैयार करते हुए सभी आगंतुकों का स्वागत करते हुए बताया कि इस का लक्ष्य एक उचित विचार- विमर्श प्रस्तुत कर यह पता लगाना है कि वर्तमान में उत्तर प्रदेश राज्य में कोविड की दूसरी लहर की वस्तु- स्थिति क्या है एवं इस संबंध में विभिन्न हितधारकों द्वारा जमीनी स्तर पर क्या प्रयास किए जा रहे हैं?
प्रो. अमिता सिंह((अध्यक्ष , NAPSIPAG सेंटर फॉर डिजास्टर रिसर्च, दिल्ली, सेवानिवृत्त, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू )) ने इस मंच में मध्यस्थ की भूमिका निभाते हुए संचालन का कार्यभार लिया । अन्य प्रख्यात एवं गणमान्य पैनलिस्ट में शामिल थे- ख़ालिद चौधरी (क्षेत्रीय प्रबन्धक, (उत्तर प्रदेश), एक्शन ऐड इंडिया , नीलम वर्मा (राज्य समन्यवक (उत्तर प्रदेश), इंडो-ग्लोबल सोशल सर्विस सोसाइटी (IGSSS)), विवेक अवस्थी (एक्सेक्यूटिव डायरेक्टर , यू.पी. वोलेंटियर हेल्थ एसोसिएशन )
डॉ. संजय सिंह (सचिव, परमार्थ समाज सेवी संस्थान , झाँसी ), लेनिन रघुवंशी (संस्थापक व सीईओ , पीपल’स विजिलेंस कमिटी ऑन ह्यूमन राइट्स ( PVCHR), वाराणसी ), सौरभ लाल (सीईओ, मॉडल गांव ), सौरभ सिंह (चीफ़ फ़ंक्शनरी , इनर वॉइस फाउंडेशन कम्युनिटी आर्सेनिक मिटिगेशन एंड रिसर्च आर्गेनाईजेशन (CAMRO)), देव प्रताप सिंह (उप -संस्थापक एंड सीईओ, वॉइस ऑफ़ स्लम, ), संदीप अबासाहेब चवण (प्रोजेक्ट लीड, टाटा ट्रस्ट्स , गोरखपुर, होम्योपैथीक डॉक्टर , पब्लिक हेल्थ प्रोफ़ेशनल ), डॉ. हीरा लाल(भारतीय प्रशासनिक सेवक व सलाहकार, मॉडल गांव ) एवं चर्चाकार की भूमिका में सुश्री प्रज्ञा अखिलेश आदि थीं ।
विशिष्ट प्रशासनिक व्यवस्था

इस पैनल चर्चा की शुरुआत “हिंदी भाषा” में ही करते हुए प्रो. अमिता सिंह ने मुख्यत : दो पहलूओं के इर्द -गिर्द ही विचार-विमर्श हेतु सभी वार्ताकारों को आमंत्रित किया । वे दो दृष्टिकोण हैं-
१. उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार ने कोविड की दूसरी लहर के मद्देनज़र क्या कार्य किये गए और क्या वे बेहतर तरीके से कर सकती थीं । ये देखा गया कि कुछ क्षेत्रों में सरकारी क्षमता अच्छी थीं, लेकिन फिर उसके संतोषजनक परिणाम दृष्टिगोचर नहीं हुए, अत: ये विश्लेषण किये जाने चाहिए वे क्या कारण रहें कि राज्य सरकारों की ये क्षमताएँ निष्प्रभावी सिद्ध हुईं ।
२. इस परिसंकटमय घड़ी में राज्य सरकार द्वारा समाज के विभिन्न नागरिक व सामुदायिक संगठनों तथा अन्य गैर-सरकारी संगठनों की भागीदारी क्यों नहीं तय की गयीं एवं इस क्रम में उनकी क्या महत्वपूर्ण बाधाएँ रहीं-इसका अवलोकन किया जाना चाहिए था। इसी संदर्भ में , प्रो. सिंह ने लोकतान्त्रिक शासन को सरकार एवं स्थानीय संगठनों के पारस्परिक सहयोग पर आधृत एक विशिष्ट प्रशासनिक व्यवस्था करार देते हुए इसे सुदृढ़ किये जाने की वकालत करते हुए अपनी अभिव्यक्ति को विराम दिया।
चर्चा के अगले क्रम में, ‘प्रभाव एवं नीति अनुसंधान संस्थान’ की टीम की ही सदस्या “सुश्री निशी वर्मा ” ने कोविड-19 के दूसरी लहर तथा संक्रमण दर, स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता, टीकाकारण की चुनौतियों एवं उससे संबन्धित अन्य मुद्दों आदि पर एक संक्षिप्त प्रस्तुतिकरण के अंतर्गत उत्तर प्रदेश राज्य के संदर्भ में, अद्यतन आँकड़ों सहित जनसांख्यिकीय , सामाजिक-आर्थिक आदि सूचकों की मदद से एक तुलनात्मक अध्ययन साझा करते हुए, इस राज्य की जमीनी हक़ीकत से रूबरू कराया और राज्य-समृद्धि की कामना करते हुए एक सार्थक चर्चा हेतु सभी आगंतुकों अपने विचार रहने के लिए आमंत्रण दिया।
राजनैतिक इच्छा शक्ति

सर्वप्रथम, श्री लेनिन रघुवंशी (संस्थापक व सीईओ , पीपल’स विजिलेंस कमिटी ऑन ह्यूमन राइट्स ( PVCHR), वाराणसी ) ने बड़े ही संक्षेप में, कोविड से जुड़ें अपने व्यक्तिगत अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि इस वैश्विक महामारी ने विशेष तौर पर समाज के सीमांत वर्ग को बुरी तरह प्रभावित किया है।
उन्होंने कोविड काल में , देश के सभी सत्ताधारी दलों की राजनैतिक इच्छा शक्ति पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए; उन्हें दलगत एवं जातिगत पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर समाज के प्रत्येक तबके-दलित, महिला, मुस्लिम आदि के लिए भी नि:स्वार्थ भाव से मदद कर इन वर्गों के स्वास्थ्य सुविधाओं (संक्रमण को दूर करने के लिए क्या उपाय अपनाये गए? )एवं खाद्य सुरक्षा (इस दिशा में, सरकार द्वारा यह भी तय किया जाना चाहिए कि क्या सिर्फ अनाज उपलब्ध करा देने से उनकी भोजन संबंधी सभी समस्याओं का पूर्णत : हल कर दिया गया है या नहीं?जैसे कि सूखे राशन के पिसवाने अदि की।) आदि अधिकारों को सुनिश्चित किये जाने की बात रखीं ।
साथ ही, उन्होंने ग्रामीण स्तर पर लोगों की इस महामारी से जुड़ें भ्राँतियों को उचित तरीके से दूर करने हेतु जाँच व रोकथाम एवं टीकरण संबंधी जागरूकता पर ज़ोर देते हुए सामाजिक एवं नागरिक संगठनों को इस दिशा में आगे आने की अपील करते हुए सभी के मंगल स्वास्थ्य की कामना की ।
आर्थिक सहायता

डॉ. हीरा लाल(भारतीय प्रशासनिक सेवक व सलाहकार, मॉडल गांव ) ने राज्य के ग्रामीण इलाकों में कोविड की विभीषिका एवं विभिन्न परिलक्षित पहलूओं की ज्यादा बात न करते हुए, प्राथमिकताओं पर ध्यान देने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि सरकार का सरोकार इस वक़्त समाज के गरीब वर्गों को आर्थिक सहायता (१०००रूपये व किसान धनराशि आदि) देते हुए उनको भूखमरी की समस्या से निजात दिलाना है(दवाई से ज्यादा खाने पर ध्यान देने की अत्यावश्यकता )।
साथ ही, दो बिंदुओं पर प्रमुखता से ज़ोर देते हुए कहा कि कोविड की इस दूसरी लहर में निर्धन वर्ग को आर्थिक संकट से बचाना एवं इस दिशा में समाज के सभी हित धारकों की जन- सहभागिता की आवश्यकता है। आगे ,डॉ लाल ने आकंड़ों व सूचनाओं के आधार पर दूसरी लहर के कम होने का ज़िक्र करते हुए कहा कि अब कोविड की तीसरी लहर के मद्देनज़र तैयारी करनी चाहिए ताकि नुकसान शून्य रहे । इसके अलावे , मॉडल गांव की अवधारणा का हवाला देते हुए भारतीय ग्रामीणता को सशक्त करने की बात रखते हुए जन भागीदारी तथा विभिन्न सामुदायिक संगठनों आदि की समर्थक बातचीत को जरुरी बताते हुए अपनी वार्ता समाप्त की।
स्वास्थ्य दुर्दशा

अन्य पैनेलिस्ट, श्री संदीप अबासाहेब चवण (प्रोजेक्ट लीड, टाटा ट्रस्ट्स , गोरखपुर, होम्योपैथीक डॉक्टर , पब्लिक हेल्थ प्रोफ़ेशनल ) ने राज्य के ग्रामीण इलाकों स्वास्थ्य दुर्दशा को जाहिर करते हुए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को कैसे समुदाय आधारित विकास की मदद से सुदृढ़ करने की बात किया ।
उन्होंने बड़ी ही निष्ठापूर्वक राज्य के गोरखपुर इलाके के ग्रामीण क्षेत्रों की कोविड संबद्ध समस्याओं को साझा करते हुए कहा कि कैसे लोगों में इस वैश्विक महामारी के दूसरे लहर में मामलों के विस्तार में एकाएक वृद्धि क्यों आई ? इसके मुख्य कारण हैं- इन इलाकों में लोगों ने कोविड के लक्षणों को मानने से इंकार किया और न ही उन्होंने उचित जाँच करायी और रोकथाम की दिशा में पहल की, जबकि इस क्षेत्र के लगभग १०-२०% परिवार बुरी तरह से प्रभावित रहें।
आगे, उन्होंने बताया कि राज्य में निम्न स्वास्थ्य सुविधाओं के अन्तर्गत ब्लॉक स्तर पर भी कोविड की सामान्य टेस्टिंग किट एवं इसके निदान की पर्याप्तता नहीं है।साथ ही, एंटीजन टेस्टिंग व RT-PCR आदि की २०-२५ किलोमीटर की परिधि में उपलब्ध न होने की बात की और ग्रामीण स्तर पर कोविड से जुड़े आइसोलेशन के प्रबंध को भी चुनौतीपूर्ण करार देते हुए कहा कि लोगों में होम आइसोलेशन की उचित व्यावहारिक दृष्टिकोण की स्वीकार्यता को लेकर इंकार की स्थिति व्याप्त है।
अत : इस दिशा में, ग्रामीण स्तर पर कम-से- कम L1 (L1- इस कैटेगरी में वह पेशेंट आते हैं जो कम इनफेक्टेड होते हैं, जिन्हें हल्का बुखार होता है, ऑक्सीजन लेवल ठीक है ब्लड रिपोर्ट्स ठीक है और उनका घर पर इलाज हो सकता है, उनको हॉस्पिटल में एडमिट होने की जरूरत नहीं होती।)
मरीज़ों की व्यवस्था सुनिश्चित किये जाने की जरुरत है।साथ ही, इस लहर को ध्यान में रखते हुए L1 एवं L2 के अंतर्गत उचित चिकित्सीय पहल को सही मायनों में जमीन पर उतारने की जरूरत है । अंत में, श्री चवण ने उत्तर प्रदेश राज्य के जनसंख्या घनत्व को भी एक हद तक कोविड के बढ़ते आकंड़ों के लिए जिम्मेदार बताते हुए माना कि इस क्रम में ग्रामीण लोगों की जागरूकता हेतु विशेष तौर पर , स्थानीय जन प्रतिनिधियों को स्वास्थ्य विभाग एवं जिला पदाधिकारी आदि से आपसी समन्वय स्थापित करते हुए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की उत्तरदायित्व का तय किया जाना बहुत जरुरी है।
नागरिक संगठनों की भूमिका

वहीं, श्री सौरभ लाल (सीईओ, मॉडल गांव ) ने अपनी संस्था के कम क्षमतावान होते हुए भी अपने टीम के स्वैच्छिक रूप से चौबीसों घंटे कार्यरत होने की बात का उल्लेख करते हुए संस्थागत प्रयासों का विवरण दिया। राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में कोविड की दूसरी लहर की चिंता जाहिर करते हुए कि लोगों में पहले इस महामारी को लेकर काफी भ्रांतिया थीं , इसलिए उनके बीच जाँच ,रोकथाम एवं टीकाकरण आदि को लेकर भी विश्वसनीयता का अभाव रहा।
इस संदर्भ में, कोरोना वॉरियर्स व फ्रंट लाइन वर्कर्स के साथ-साथ विभिन्न नागरिक संगठनों की भूमिका महत्वपूर्ण बन पड़ती है, विशेषकर ग्रामीण जनता को जागरूक एवं शिक्षित(रूढ़िवादिता के कारण ग्रामीण अकड़पन भी एक बाधक पहलू ) करते हुए इस महामारी से बचने के एकमात्र कारगर उपाय अर्थात “टीकाकरण” की अनिवार्यता सुनिश्चित किया जाना।
साथ ही, उन्होंने ग्रामीण जनता द्वारा कोविड से जुड़े सभी चिकित्सीय प्रयासों की अस्वीकार्यता के कारणों को चिन्हित करते हुए माना कि राज्य में ग्रामीण स्तर पर आधारभूत अवसंरचनाओं का सर्वथा अभाव रहा, साथ ही प्रशासनिक कार्यान्वयन व दुर्बलताओं तथा इनके पहुँच व वितरण में भी खामियाँ प्रदर्शित हुई हैं । राज्य के सुदूरगामी इलाकों में ये समस्याएं बड़े पैमाने पर व्याप्त हैं, अत: जरूरत है इस दिशा में पर्याप्त संसाधनों की उपब्धता करके ग्रमीणों को सशक्त करते हुए एक सहयोगात्मक सेतु का निर्माण करते हुए तथा सामाजिक प्रतिबद्धता तय करते हुए बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराकर कोविड के हालातों पर क़ाबू पाया जायें।
सामाजिक सहयोग

सुश्री नीलम वर्मा (राज्य समन्यवक (उत्तर प्रदेश), इंडो-ग्लोबल सोशल सर्विस सोसाइटी (IGSSS)) ने राज्य सरकार द्वारा कोविड के दूसरे लहर के बढ़ने हेतु सरकारी नीतियों एवं अकर्मण्यता को मुख्य कारण बताते हुए अपने विचार साझा किये। इसी क्रम में, हाल में हुए उत्तर प्रदेश राज्य के पंचायत -चुनाव के दौरान ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में मौत के आँकड़ों ( महामारी में शिक्षकों की ड्यूटी की बाध्यता से मृत्यु दर में बढ़ोतरी ) में वृद्धि रही। साथ ही, परिणामस्वरूप लोगों में भय का माहौल एवं सामाजिक सहयोग की भावना में कमी देखी गयी, अन्त्येष्टि कर्म से भी दूरी आदि।
गाँव में एकमात्र कारण लोगों में जागरूकता की कमी होना पाया गया , अत: तीसरे चरण की तैयारी के क्रम में यह तथ्य अपरिहार्य बन पड़ता है कि ग्रामीण इलाकों में सामुदायिक विकास करते हुए संवाद स्थापित किये जायें। इसके अलावे, गाँवों में युवाओं की सहायता प्राप्त कर सामुदायिक लामबंदी के माध्यम से ग्रमीणों को टीकाकरण के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। इन उद्देश्यों को वास्तविक आकार देने हेतु राज्य सरकारों को अपनी व्यक्तिगत दृष्टिकोण से उबरकर सामुदायिक आधारित विचार अपनाते हुए समाज के विभिन्न गैर- सरकारी संगठनों से ताल-मेल बैठाकर इस आपदा में बुनियादी स्तर पर काम करने होंगे।
टीकाकरण

इनके अतिरिक्त , डॉ. संजय सिंह (सचिव, परमार्थ समाज सेवी संस्थान , झाँसी ) ने व्यापक तौर पर अपने मत रखते हुए कहा कि ज्ञातव्य है उत्तर प्रदेश के एक बड़ा राज्य जो मुख्यतया ५ कृषि-जलवायविक क्षेत्रों – अवध,बुंदेलखंड, पूर्वांचल, विंध्याचल आदि में वर्गीकृत है। साथ ही, राज्य की जनसंख्या के लिहाज़ से भी कोविड के इस दूसरे लहर के अंतर्गत सरकार की तैयारियाँ चुनौतीपूर्ण ही हैं। इसके अलावे, पिछले कुछ दशकों में राज्य सरकारों का मुख्य फोकस शहरी सुविधाओं को बेहतर करने की दिशा में रहा और यही कारण है कि ग्रामीण स्तर पर प्राथमिक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की अपर्याप्त उपलब्धता है, साथ ही स्वास्थ्य कर्मियों की भी अत्यंत कमी है।
इसी संदर्भ में, यह विचारणीय तथ्य है कि आख़िरकार राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों को इस वैश्विक आपदा की मार इतनी क्यों झेलनी पड़ी? इसके प्रमुखत : तीन कारण हैं :
- १.गाँवों की जनता ने हठधर्मिता का परिचय देते हुए इस लहर को गंभीरता से नहीं लिया और पिछले साल के कोविड की स्थिति को आधार मानते हुए वे चिंतामुक्त रहें।
- २. प्रवासी श्रमिकों की समस्या ने एक बार फिर ग्रामीण आर्थिक संरचना पर प्रहार कर दयनीय स्थिति दर्शायी।
- ३. गाँवों के लोगों की झोला-छाप चिकित्सिकों पर निर्भरता एवं कोविड सम्बंधित जाँच, रोकथाम एवं टीकाकरण एवं आदि के प्रति शंकाओं ने भी चुनौती का एक वातावरण कायम कर दिया।
साथ ही, राज्य के लोगों में पंचायत चुनाव को देखते हुए व्यवस्था के प्रति आक्रोश रहा एवं ग्रामीण आबादी में धार्मिक व सामाजिक रूढ़िवादिता ने भी भय का माहौल बनाया और मृत्यु दर में अथाह वृद्धि हुई।
अंतत : , डॉ. संजय सिंह ने कहा कि जमीनी स्तर पर कोविड की लहर भयावह रही है , अत: इस दिशा में सभी सामाजिक, आर्थिक एवं आर्थिक संगठनों को जिम्मेदारी निभाते हुए ग्रामीणों को टीकाकरण के लिए प्रोत्साहित करने की जरुरत है. साथ ही, राज्य सरकार को किंकर्त्तव्यविमूढ़ होकर उपरोक्त वर्णित मुद्दों पर यथाशीघ्र सभी उचित प्रयास जैसे- मेडिकल सुविधाओं की उपलब्धता एवं कार्यान्यवयन, पुर्नवास आदि के ठोस रणनीति तय करनी होगी।
सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं शिक्षा

श्री ख़ालिद चौधरी (क्षेत्रीय प्रबन्धक, (उत्तर प्रदेश), एक्शन ऐड इंडिया) ने अपनी बातों को विशेषत: वंचित समुदाय तथा प्रवासी श्रमिकों के संदर्भ में समायोजित करते हुए कहा कि कोविड की दूसरी लहर ने इनके प्रति स्वास्थ्य संकट एवं अदृश्य आपात जैसे मुद्दे प्रदर्शित किये हैं। यह लहर राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए कई मायनों में हृदयविदारक़ सिद्ध हुआ- पंचायत चुनाव के दौरान मामलों में वृद्धि , कोविड उचित व्यवहार का न होना एवं ग्रामीण जनता द्वारा कोविड की समस्या को गंभीरता से न लेते हुए इसके परिणामों को कम आकलित करना आदि।
इसी क्रम में, अबतक राज्य के पूर्वांचल एवं बुंदेलखंड क्षेत्रों में ६०-७०% मामले देखे गए, टेस्टिंग की उचित व्यवस्था का न होना, ऑक्सीज़न की अनुपलब्धता आदि ने मौत के आँकड़ों में बेइंतहा इज़ाफ़ा किया, जो कि राज्य सरकार के आकंडों व रिकॉर्ड से बिल्कुल मेल नहीं खाते।
आगे, उन्होंने कहा कि इस समस्या के निदान हेतु राज्य सरकार , सामाजिक, चिकित्सीय एवं अन्य संस्थाओं आदि को सयुंक्त प्रयास करने होंगे। साथ ही , उन्होंने राज्य सरकार द्वारा कुछ खास मदों पर सार्वजनिक निवेश करने की बात करते हुए कहा कि इस संदर्भ में , स्वास्थ्य अवसंरचनाओं , ग्रामीण आधारभूत संरचनाओं एवं संसाधनों के आवंटन पर अधिक व्यय करने की आवश्यकता है, यहाँ उन्होंने उत्तराखंड राज्य सरकार की प्रतिबद्धता को भी उजागर किया।
इसके अलावे, राज्य सरकार को सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं शिक्षा आदि विकासात्मक मुद्दों के जागरूकता हेतु सामाजिक -धार्मिक संगठनों से समन्वय स्थापित करने की नितांत आवश्यकता है। उत्तर प्रदेश राज्य के वंचित तबके विशेषकर मुशहरा, बुनकर, पलायित मज़दूर आदि की आर्थिक स्थिति चिंताजनक है।
साथ ही, राज्य सरकार द्वारा केवल ५ किलो अनाज देने की घोषणा कर अपनी कर्तव्य से इति श्री कर लेना सर्वथा उचित नहीं है। इस संकटमय घड़ी में, सरकार को खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के क्रम में प्रवासी मजदूरों की स्थिति का वास्तविक आकलन करने की जरूरत है, उन्हें रोजगार के वैकल्पिक साधन के रूप में “मनरेगा का लाभ” एवं सरकारी योजना के तहत गैस-ईंधन आदि उपलब्ध हो रहे है या नहीं?
साथ ही, उन्होंने बच्चों की समस्याओं को इंगित करते हुए सुझाव दिया किया कि इनके मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने की जरुरत है और बताया कि इस अनिश्चितता के माहौल में ग्रामीण बच्चों की शिक्षा बुरी तरह प्रभावित हुई है, केवल १२-१५% आबादी ही ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त कर पा रही है , बाकी ८५% वंचित वर्ग की श्रेणी में आते हैं। अतः इन सब समस्याओं के निराकरण के लिए अत्यावश्यक है कि राज्य सरकारें समाज के विभिन्न हितधारकों – सिविल सोसाइटी, पत्रकार, अकादमिक वर्गों आदि के साथ मिलकर सभी समुदायों के हित के लिए बिना किसी भेदभाव के कार्यरत रहें। साथ ही, पिछली गलतियों से सबक लेते हुए उत्तरदायी भूमिका निभाते निरंतर आगे बढ़ें।
भूख का मुद्दा

सौरभ सिंह (चीफ़ फ़ंक्शनरी , इनर वॉइस फाउंडेशन कम्युनिटी आर्सेनिक मिटिगेशन एंड रिसर्च आर्गेनाईजेशन (CAMRO)) ने अपने संस्था के माध्यम से किये जा रहे संचालन कार्यों (फ़ूड एवं दवाओं का नि :शुल्क वितरण) की व्याख्या की कि कैसे वे मुख्य तौर पर बिहार एवं उत्तर प्रदेश- इन दो राज्यों की झुग्गी – झोपड़ी में रहने वाले लोगों एवं भिखारियों आदि जैसे वंचित वर्गों को खाद्य सुरक्षा उपलब्ध करा रहे हैं।
यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि “भूख का मुद्दा ” जो कि कोविड के इस दूसरे चरण में स्वास्थ्य के मुद्दे के बाद एक बेसिक समस्या (राज्य के वाराणसी तथा चंदौली क्षेत्र – विशेषत : प्रभावित ) के रूप में उभरा है।
साथ ही, राज्य सरकार की जातिगत राजनैतिक निर्णयों ने भी सरकारी योजनाओं की पहुँच कुछ खास तबकों तक ही सीमित रखा है, शुक्र है कि सरकार की अपेक्षा कुछ लोगों, सोशल मीडिया एवं सिविल सोसाइटी के समन्वयकारी प्रयासों ने इन समस्याओं को समाज के मुख्यधारा में लाकर एक स्वस्थ बहस शुरू की है।
राज्य की वर्तमान सरकार के शासन का ध्येय लोक -कल्याणकारी राज्य की न होकर ,अपितु एक अन्य मॉडल “पीपीटी” हो गया है, जिसका दिशा-दशा निश्चित कर पाना स्वयं में चुनौती सिद्ध हो रहा है।
राज्य के शहर एवं ग्रामीण- दोनों इलाके कोविड की दूसरी लहर से बुरी तरह समस्याग्रस्त हैं, समाज के कुछ रसूख़दार लोगों को ही सरकारी महकमों आदि सुविधाओं का लाभ मिल रहा है। साथ ही, उन्होंने ग़ैर -सरकारी संगठनों की राज्य सरकारों द्वारा उचित मान्यता व समर्थन न देने सरकारी मानसिकता की निंदा की और कहा कि हमारी जैसी संस्थाएँ अपने सीमित संसाधनों की बदौलत निर्धन वर्ग की सेवा की लिए सदैव संघर्षरत हैं।
साथ ही, उन्होंने सरकारी अकर्मण्यता के कुछ उदाहरणों को साझा किया कि कैसे जनता को अवसंरचनात्मक सुविधाओं(बिहार एवं उत्तर प्रदेश- दोनों राज्यों में स्वास्थ्य कर्मियों की कमी एवं उत्तर प्रदेश के कुछ गाँवों में सरकारी अस्पतालों का वास्तविक मायनों में संचालित नहीं होना आदि समस्याएँ ) के लाभ से वंचित किया जाता है। अतः इस दिशा में, ग्रामीण स्तर पर विभिन्न समितियों के मध्य समन्वय बनाते हुए बेसिक मेडिकल सुविधाओं को चालू कराया जायें।
राज्य के ग्रामीण इलाकों में भय व्याप्त है, पंचायत चुनाव के दौरान राज्यभर में शिक्षकों के मृत्यु के भ्रामक सरकारी आँकड़ें (केवल ३ शिक्षकों की ही चुनावी ड्यूटी के दौरान कोरोना से मौत ) , सरकारी अस्पतालों में कोविड मरीजों व उनके रिश्तेदारों आदि कुछ ऐसी वास्तविक चिंताएँ जो राज्य सरकार के विद्रूप छवि प्रस्तुत करती है।
अतः राज्य सरकार को शासन व्यवस्था के मौलिक कर्त्तव्यों का निर्वहन करते हुए अपनी एक उत्तरदायी, जवाबदेह तथा पारदर्शक निकाय की भूमिका निभाते हुए ग्रामीण लोक- समितियों व प्रधानों से सामंजस्य बनाकर आगे करना चाहिए। साथ ही, शहरों में भी राज्य सरकार को एनजीओ के साथ सहयोगतात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। राज्य सरकार को गुड-गवर्नेंस की दिशा में , नमामि -गंगा आदि जैसे राजस्व मॉडल के उद्देश्य के प्रति जनता को भली-भाँति अवगत कराते हुए एक सकारात्मक पहल करनी चाहिए।
अंतत: उन्होंने ने ग्रामीण पंचायत उप- समितियों को पुनर्जीवित एवं सक्रिय करने का सुझाव दिया और जनता के प्रति प्रशासनिक प्रतिबद्धता ज़ाहिर करने हेतु विभिन्न कानूनों को मिलकर काम करने की भी वक़ालत भी, जैसे कि खाद्य सुरक्षा, शिक्षा का अधिकार एवं सूचना का अधिकार आदि के समन्यवकारी रणनीति के तहत ग्रामीण स्तर पर कार्य करने की दरक़ार है।
लोकतान्त्रिक व्यवस्था

अंतत : श्री विवेक अवस्थी (एक्सेक्यूटिव डायरेक्टर , यू.पी. वोलेंटियर हेल्थ एसोसिएशन ) ने सभी अन्य पैनेलिस्ट की बातों से सहमति जताते हुए कोविड से जुड़े अपने निजी अनुभव विचार साझा किये। उन्होंने भी स्वीकारा कि सरकार का पहला उद्देश्य जनता के कल्याण करना ही है, अतः लोकतान्त्रिक व्यवस्था की सफलता की नींव इसी पर टिकी है कि सरकारें सिविल सोसाइटी की सेवाओं आदि की सहायता से इस दिशा में अग्रसर हों।
राज्य के गाँवों में व्याप्त कोविड की विभीषिका ने एक बार भी सरकारी लाचरता को उजागर करते हुए सामान्य जान-जीवन को पूरी तरह प्रभावित किया है। साथ ही, कोविड के इस दूसरे चरण ने प्रशासनिक नीतियों की “टॉप-डाउन दृष्टिकोण ” की दुर्बलताओं पर कटाक्ष किया है। अतः सरकारी प्रतिबद्धता को और भी प्रबल करने की दिशा में सभी नागरिक संस्थाओं को मिलकर काम करने की आवश्यकता है , इसी परिप्रेक्ष्य में सरकारी वित्तीय सहायता प्रदान कर ऐसी संस्थाओं को मान्यता एवं सम्मान देने की जरुरत है।
कोविड की इस लहर ने ग्रामीण सामाजिक ताने -बाने एवं आपसी विश्वास , मैत्रीपूर्ण संबंधों (कोविड के भय से अंतिम संस्कार के समय लोगों की सहभागिता में कमी ) को भी चोटिल किया है , अतः ग्रामीण जागरूकता को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
भविष्यवर्ती योजनाओं

प्रो. अमिता सिंह((अध्यक्ष , NAPSIPAG सेंटर फॉर डिजास्टर रिसर्च, दिल्ली, सेवानिवृत्त, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू )) ने इस पैनल के अंतिम चरण का बड़ा ही सार्थक समापन करते हुए सभी पैनेलिस्ट की अभिव्यक्तियों की सराहना करते हुए इस चर्चा के मुख्यत : ३ सारगर्भित मुद्दों को रेखांकित किया. ये हैं-
१. सरकार के पास पर्याप्त संसाधन होते हैं, बस उनके उचित कार्यान्वयन की दिशा में राजनैतिक इच्छा शक्ति एवं जिजीविषा का अभाव है। उन्होंने राजनेताओं द्वारा बारम्बार दिए जाने वाले कुतर्कों (देश की जनसंख्या किसी भी नई समस्या के निराकरण में बाधक है )की निंदा करते हुए कहा कि ये सारे मूल मुद्दों से जनता का ध्यान हटाने का एक निरर्थक युक्ति ही है। सरकारी फंडों का आवंटन जमीनी स्तर पर उपयोग होता दिखाई नहीं देता।
२. सरकारी शासन व्यवस्था का अनुत्तरदायी चरित्र – सरकार यह स्पष्ट नहीं कर पा रही कि कैसे वो सरकारी योजनाओं (उदाहरणार्थ – सरकारी राशन व अनाज को कैसे भोजन में तब्दील किया जाये, उज्ज्वला गैस योजना , मनरेगा का ख़त्म किया जाना आदि )को सही मायने में लागू करवायेंगी।
३. स्वास्थ्य क्षेत्र में चिकित्सीय सुविधाओं का लाभ क्या समाज के हाशिये वर्ग को हासिल हो रहा है या नहीं? इस दिशा में, राज्य सरकारों को आत्मनिरीक्षण करते हुए जातिगत एवं दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सामाजिक रूपांतरण पर ध्यान केंद्रित करना होगा। साथ ही, शासन व्यवस्था में लोक सेवकों के नैतिकता और अखंडता को सुदृढ़ता प्रदान किये जाने की जरुरत है क्योंकि ये ही स्थानीय स्तर पर वास्तविक सेवा-प्रदा ता की भूमिका निभाते हैं। आगे सभी पैनेलिस्ट ने इस आपदा के संदर्भ में आगे की रणनीति को भी साझा करते हुए अपने विचार व्यक्त किये।
अंत में, प्रो अमिता सिंह ने इस वैश्विक आपदा से निपटने हेतु पाँच -सूत्री बहुमूल्य सुझाव (अल्पकालिक और दीर्घकालिक ) देते हुए इस पैनल- चर्चा को विराम दिया। वे निम्नांकित हैं –
१. राज्य सरकार को यथाशीघ्र सभी विपक्षी दलों के साथ बैठक कर राज्य हित में एकमत होकर सहयोग एवं समन्वयकारी भूमिका निभाते हुए एक नीतिगत निर्णय लेने की जरुरत है।
२. सभी ग्रामीण इलाकों में कोविड के लक्षणों के व्यक्तियों एक निर्धारित स्थान पर सरकारी प्रयासों द्वारा संगरोध / आइसोलेशन आदि (तम्बू गाड़ कर सभी बेसिक मेडिकल सुविधाओं से लैस इंतेजाम किये जाये ) के प्रबंध किये जाये।
३. इसी दिशा में, सरकार द्वारा कोविड की रोकथाम के क्रम में बेसिक चिकित्सीय सुविधा (हाथ की सफाई हेतु साबुनों का नि :शुल्क उपलब्धता ) एवं भोजन की मुफ़्त वितरण की व्यवस्था(तमिलनाडु राज्य के अम्मा कैंटीन की तर्ज़ पर ) तय की जाएँ।
४. राज्य सरकारों को पंचायत एवं “राज्य आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण “ के बीच एक संपर्क साधने की जरुरत है ताकि वास्तविक तौर पर शासन की जवाबदेही तय की जा सकें। यदि राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण सुषुप्तावस्था में है तो उसे पुनर्जीवित किये जाने की आवश्यकता है ताकि योजनावार पारदर्शिता सुनिश्चित ( राष्ट्रीय आपदा अधिनियम , २००५ के अंतर्गत निर्धारित समय-सीमा के तहत प्लान / योजनाओं का विवरण दिया गया है ) किया जा सके।
५. अंतिम उपाय – ग़ैर -सरकारी संगठनों एवं युवा शक्ति की ब्रिगेड बनाकर (उनकी ऊर्जा का साकरात्मक उपयोग करना ) राज्यों के जिलों का उनके प्रशासनिक प्राधिकारियों के साथ प्रत्यक्ष समन्वय स्थापित कर कोविड की चुनौतियों को निराकृत किया जा सकता है।
साथ ही, कोविड की तीसरी लहर के मद्देनज़र सरकार द्वारा एक “श्वेत पत्र ” निर्गत कर अपनी भविष्यवर्ती योजनाओं की प्रतिबद्धता तय की जा सकती है। अंत में, अधिवक्ता श्री सुशांत सिंह ने अपना विचार साझा किया कि ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायत एवं डीएम की ओर से कोविड से पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसके दाह-संस्कार के क्रम में कोविड प्रोटोकॉल का सख्ती पालन कराने हेतु जागरूक किये जाने की जाने की आवश्यकता है।
पावती: प्रियंका इम्प्री में एक रिसर्च इंटर्न हैं और वर्तमान में चिन्मय विश्वविद्यापीठ, कोच्चि, केरल से एमए (पीपीजी) कोर्स कर रही हैं।