रूरल रियलिटीज़ | बिहार और झारखंड भारतीय गांवों में दूसरी लहर से निपटने में अभ्यासी’ के ग्रामीण वास्तविकताएं अनुभव

इम्प्री टीम

यह पैनल चर्चा विशेषकर  भारतीय गाँवों में कोविड की दूसरी लहर के मद्देनज़र विभिन्न पेशेवरों के सामना करने के अनुभवों से संबद्ध था, जो की “प्रभाव एवं नीति अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली” के सेंटर फॉर हैबिटेट, अर्बन एंड रीजनल स्ट्डिज (CHURS) द्वारा 15 मई , 2021 को आयोजित की गयी। यह संस्थान द्वारा  देश के सम्पूर्ण राज्यों के लिए आयोजित की जा रही “पैनल चर्चा” की एक अन्य कड़ी ही थी बिहार और झारखंड, जिसका केन्द्रीय बिन्दु -उत्तर भारत के दो महत्वपूर्ण राज्यों: बिहार एवं झारखंड की ग्रामीण वास्तविकता रहा।

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इस कार्यक्रम की शुरुआत “प्रभाव एवं नीति अनुसंधान संस्थान” की रीतिका गुप्ता( सहायक निदेशिका)  ने किया। साथ ही, डॉ सिमी मेहता ने इस पैनल चर्चा की पृष्ठभूमि तैयार करते हुए सभी आगंतुकों का स्वागत करते हुए बताया कि इस का लक्ष्य एक उचित विचार- विमर्श प्रस्तुत कर यह पता लगाना है कि वर्तमान में उपरोक्त वर्णित राज्यों में कोविड की दूसरी लहर की वस्तु- स्थिति क्या है  एवं इस संबंध में विभिन्न हितधारकों द्वारा जमीनी स्तर पर क्या प्रयास किए जा रहे हैं?

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इनके अलावे, डॉ नलिन भारती(एसोसिएट प्रोफेसर, आईआईटी, पटना) ने इस मंच में मध्यस्थ की भूमिका निभाते हुए संचालन का कार्यभार लिया । अन्य प्रख्यात एवं गणमान्य पैनलिस्ट में शामिल थे- डॉ कुशवाहा शशि भूषण मेहता (विधायक- पंखी निर्वाचन क्षेत्र, झारखंड), डॉ अनामिका प्रियदर्शिनी(लीड रिसर्च (बिहार), सेंटर फॉर कैटालीज़िंग चेंज), डॉ गुरजीत सिंह (राज्य समन्वयक,सामाजिक अंकेक्षण इकाई, झारखंड), स्मिता सिंह (इंटरनेशनल हैल्थ प्रमोशन, डॉक्टोरल रिसर्चर, आईआईटी-पटना), उर्मिला कुमारी (एएनएम, शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, अदाल्हातु, सदर, राँची), डॉ शरद कुमारी (स्टेट प्रोग्राम मैनेजर , एक्शन ऐड एसोसिएशन, बिहार एंड झारखंड) एवं श्रीमती दीपिका सिंह पांडे (विधायक- महागमा निर्वाचन क्षेत्र, झारखंड) आदि।

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डॉ नलिन भारती ने चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि कैसे वैश्विक महामारी- कोविड की एकाएक दूसरी लहर ने अपना भयंकर रूप दिखाते हुए मानव सभ्यता के विभिन्न पहलुओं को बुरी तरह से प्रभावित किया है। ज्ञातव्य है की इस महामारी के पहले दौर एवं लॉकडाउन में मुख्य तौर पर प्रवासी श्रमिकों एवं रोजगार आदि की समस्या देखी गयी। परंतु, यह लहर कई मायनों में कोविड पहली लहर से अलग ही है, इस क्रम में देश के ग्रामीण इलाके नए एवं बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। अतः अध्ययनों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इस महामारी के पहले औए दूसरे लहर की प्रकृति एवं परिणाम में बहुत अंतर है।

जैसा कि हम जानते है कि हमारे देश  की अधिकांश आबादी आज भी गाँवों में रहती है, बिहार राज्य की तो 94% ग्रामीण जनसंख्या ही है, जिनके पास कोविड की विभीषिका से राहत पाने हेतु  पर्याप्त संसाधनों का सर्वथा अभाव ही है।

वर्तमान में इनके समक्ष विशेषत: स्वास्थ्य संबंधी आर्थिक एवं सामाजिक चुनौतियां हैं। कैसे इस ग्रामीण आबादी को बड़े पैमाने पर हो बढ़ रहे संक्रमण और मृत्यु से सुरक्षा दिलाकर उनके स्वास्थ्य एवं जीविकोपार्जन को सुनिश्चित कर इस अनिश्चितता की घड़ी में मानसिक एवं आर्थिक बल प्रदान किया जाए। अंत में, डॉ भारती ने उपरोक्त वर्णित विषयों पर ही अन्य पैनलिस्टों को अपना मत रखने के लिए ज़ोर देते हुए अपनी बात समाप्त की।

चर्चा के अगले क्रम में, कोविड-19 के दूसरी लहर तथा संक्रमण दर, स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता, टीकाकारण की चुनौतियों एवं उससे संबन्धित अन्य मुद्दों आदि पर ‘प्रभाव एवं नीति अनुसंधान संस्थान’ की “सुनिधि अग्रवाल(रिसर्च असिस्टेंट)” द्वारा बिहार एवं झारखंड दोनों राज्यों की सामाजिक- आर्थिक सूचकों की मदद से नवीन आँकड़ों सहित राज्यवार एक संक्षिप्त एवं राष्ट्रीय स्तर का तुलनात्मक अध्ययन साझा किया गया।

“टीकाकरण अभियान”

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आगे, उर्मिला कुमारी (एएनएम) ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि कैसे कोविड 19 की दूसरी लहर ने सामान्य जनता में भय का माहौल खड़ा कर दिया, अतः इस दिशा में लोगों को जागरूक करने की नितांत आवश्यकता है। उन्होंने दृढ़ता के साथ अपनी बात रखते हुए “टीकाकरण अभियान” को एक अनिवार्य कदम बताया और साथ ही लोगों से अपील भी किया कि वे सरकार द्वारा जारी किए सभी निर्देशों का पालन करते हुए स्वयं को लाभान्वित कर सुरक्षित बने रहें।

सामाजिक एवं व्यवहार विज्ञान

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अन्य पैनलिस्ट ‘स्मिता सिंह’ ने अपनी चर्चा में मुख्य तौर पर कोविड-19 की दूसरी लहर के संदर्भ में लोगों द्वारा एक “सामाजिक एवं व्यवहार विज्ञान(Behavioural Science)” दृष्टिकोण पर काम करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। आगे वे अपना पक्ष रखते हुए कहा कि महामारी के दौर में हमें स्वास्थ्य व्यवस्था के अंतर्गत निवारक उपायों पर गंभीरता से काम किए जाने तथा सरकार द्वारा भी इस पहलू पर पर्याप्त मात्रा में आर्थिक निवेश करने की नितांत आवश्यकता है।

इसी क्रम में, कोविड को लेकर अबतक के प्रयासों की ईमानदारीपूर्वक आकलन किए जाना भी जरूरी है ताकि हमें अपनी विफलताओं का पता चले और उसी दिशा में हम अपनी रणनीति बनाकर काम करें, तभी सही मायने में इस भयावह स्थिति में कुछ उम्मीद बनेगी। इस संदर्भ में, उन्होंने कहा कि सामाजिक, सांस्कृतिक एवं व्यावहारिक पहलुओं पर विस्तार से विचार- विमर्श करना होगा और त्रासदी के इस मंज़र में  सामाजिक एवं भावनात्मक सहयोग का परिचय देकर इस आपदा को कुछ हद तक कम किया जा सकता है।

इसी दिशा में, व्यक्तियों द्वारा उचित तरीके से मास्क पहनना, हाथों की समय-समय पर सफाई, शारीरिक दूरी का पालन करना एवं टीकाकरण लेने आदि व्यवहारों में दृढ़ता से बदलाव लाने होंगे और इनके स्वास्थ्य संबंधी वैज्ञानिक लाभों से भी अवगत कराना होगा। अत: इन पहलुओं पर देश के सभी नागरिकों की यह व्यक्तिगत तथा सामाजिक दायित्व बनती है कि वे अपने-अपने स्तर से सहयोग, समन्वय एवं कल्याण की भावना का परिचय देते हुए एक नेतृत्वकर्ता की भूमिका अदा करें और इस वैश्विक महामारी का जमीनी स्तर पर अपने- अपने छोटे-छोटे, किन्तु अनिवार्य प्रयासों सहित  डटकर मुक़ाबला करें।

व्यापक रणनीति

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श्रीमती दीपिका सिंह पांडे (विधायक- महागमा निर्वाचन क्षेत्र, झारखंड) ने कोविड की दूसरी लहर के दौरान अपने राज्य के ग्रामीण इलाकों की स्थिति से अवगत कराते हुए विभिन्न पहलुओं पर आत्मविश्वास के साथ अपने विचारों को  रखते हुए बताया कि किस तरह सरकार ने इस आपदा से निपटने के लिए एक मजबूत एवं व्यापक रणनीति तैयार की है।

इसी क्रम में, झारखंड राज्य में  14 मई 2021 से 18- 44 वर्ष आयु वर्ग के लोगों के टीकाकरण कार्यक्रम भी आधिकारिक रूप से शुरू ककिया जा चुका है। अपने राज्य में इस महामारी की भयावह स्थिति की जमीनी हकीकत बताते हुए वे काफी अडिगता से अपनी बातें रखीं। उनके हिसाब से इस लहर की प्राथमिकता केवल स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों से है, जबकि पिछले लहर में प्रवासी श्रमिकों की समस्या हावी थी।

साथ ही,उन्होंने बताया कि कैसे वे अपने सरकारी दायित्वों का निर्वहन करते हुए अपने निर्वाचन क्षेत्र के सुदूरपूर्व इलाकों के भी स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों से भली-भांति अवगत हैं  और इस दिशा में वहाँ भीआधारभूत सुविधाओं को उपलब्ध करा रहे हैं। इस क्रम में, जनता में टेस्टिंग, दवाइयों एवं टीकाकरण आदि का काम किया जा रहा है, साथ ही आपदा के इस दौर में, समाज के सीमांत वर्गों की खाद्य सुरक्षा को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से सुनिश्चित किया जा रहा है।

माननीय विधायक ने साथ ही कुछ चिंताओं को ही जाहिर किया कैसे ये इस दूसरी लहर को काबू पाने में बाधक साबित हो सकती हैं, अत: एक सटीक रणनीति एवं प्रतिबद्धता के साथ इस दिशा में प्रयास किया जाना इस समय की मांग है। इसी क्रम में, माननीय महिला विधायक ने डॉ नलिन की बातों का समर्थन करते हुए कहा कि इस समय हमें सावधानी पूर्वक , लेकिन कठोरता के साथ आगे बढ़ना है। इसी संदर्भ में, उन्होंने पूर्वी झारखंड के जिलों का  उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे इनमें  प्रवासी एवं खाद्य सुरक्षा संबंधी मुद्दों का उचित एवं सहज निराकरण कर एक मिसाल पेश की गयी हैं।

आगे वे बताती है कि सरकार द्वारा सही समय पर लिए गए नीतिगत फैसलों ने कोविड की इस दूसरी लहर के प्रभावों को कम करने में कुछ हद तक सफल जरूर रहा। इस क्रम में, भगदड़ की स्थिति न उत्पन्न हो, सरकार ने तुरंत ही पर्याप्त संख्या में अस्पतालों में बेड, ऑक्सीजन, दवाइयों आदि की उपलब्धता सुनिश्चित कराने का हर संभव कार्य किया।  साथ ही, जनता के दैनिक जररूरतों एवं रोजगार आदि पहलुओं को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने पहले आंशिक रूप से लॉकडाउन का नियम लागू कार्य, ताकि सामान्य जनजीवन प्रभावित न हो। लेकिन कोविड के प्रसार को देखते हुए सरकार ने 16 मई, 2021से राज्य भर में सम्पूर्ण लॉकडाउन घोषित कार दिया।

ज्ञातव्य है कि झारखंड में कोरोना के इस चरण में अचानक मृत्यु दर में तेज़ी आयी थी और इस बार इसका ज्यादा असर ग्रामीण क्षेत्रों में देखा गया। इसके अतिरिक्त उन्होंने यह बताया कि कैसे झारखंड में लोगों में कोविड एवं टायफायड बुखार आदि अन्य बीमारियों को लक्षणों के बारे में स्पष्ट जानकारी के अभाव में भ्रम व्याप्त रहा और सही उपचार न मिलने के वजह से भी मौत के आँकड़ों में विगत महीनों में वृद्धि देखी गयी। इसके अलावे, कोविड होने के बाद उचित चिकित्सीय उपचार न मिलने एवं होम- आइसोलेशन नियमों एवं जागरुकता के अभाव में भी हालात नियंत्रण से बेकाबू हो गए।

साथ ही, श्रीमती दीपिका सिंह पांडे ने कहा की वे निजी स्तर पर भी सक्रिय है कि जनता को सभी सुविधाएं उपलब्ध हो। आगामी योजनाओं को साझा करते हुए कहा कि हमारी सरकार पूर्ण रूप से कटिबद्ध है कि ब्लॉक एवं पंचायत स्तर के सभी पीएचएस एवं सीएचएस में भी पूरी तरह से चिकित्सीय उपकरणों की संख्या उपलब्ध हो, क्योंकि यदि ग्रामीण जनता को उनके नजदीकी स्वास्थ्य केन्द्रों पर ही सारी सुविधाएं मिलेगी तो उनका तीव्र इलाज़ हो सकेगा और शहरों के अस्पतालों में भीड़ एवं आपाधापी की स्थिति नहीं होगी।

आगे यह भी कहा कि हमारी सरकार नागरिकों के स्वास्थ्य अधिकारों को सुनिश्चित करने की दिशा में प्रतिबद्ध है, जिसके लिए दवाओं की कालाबाज़ारी एवं व्यापार संबंधी अन्य अनुचित व्यवहार करने वाले व्यापारियों आदि को सख्त कारवाई करने का निर्णय लिया गया। इस तरह से  आपदा के इस घड़ी में, हमारी सरकार यह प्रयास कर रही है कि किसी को भी अनुचित आर्थिक लाभ पाने के अवसर न मिले, बल्कि उनको  अपनी व्यक्तिगत एवं सामाजिक जिम्मेवारी का बोध हो सके।  

ग्रामीण अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर भी उन्होंने एक रणनीतिक विवरण साझा किया और कहा कि जैसा कि हम जानते हैं  कि झारखंड राज्य में ज्यादा उद्योग- धंधे नहीं हैं, अत: निचले तबके के वर्ग मुख्य रूप से कृषि, काश्तकार व निर्माण-कार्य आदि से जुड़ें हैं। साथ ही, सरकार यह अथक प्रयास कर रही है कि ऐसे लोगों को उनके क्षेत्र में ही पंचायत स्तर पर मनरेगा के अंतर्गत रोजगार उपलब्ध कराया जाये।

इसी क्रम में, किसानों को सरकारी पहल से अच्छी गुणवत्ता के बीज सब्सिडी के तहत उपलब्ध कराया जा रहा है ताकि वे कोविड के इस संकटमयी काल में आर्थिक बोझ का सामना न करें। उपरोक्त वर्णित योजनाओं के अलावा, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) के तहत लोगों के बैंक खातों में सीधे धनराशि अंतरित की जा रही है, ताकि उन्हें एक मौद्रिक सबलता मिलती रहे।

माननीय विधायक ने आगे टीकाकरण को लेकर अपने राज्य के कुछ चुनौतियों को साझा करते हुए कहा कि अफवाहों को नजरंदाज करते हुए एक सजग एवं ज़िम्मेवार नागरिक की भूमिका निभाते हुए कोविड की दूसरी लहर का पूरे आत्मविश्वास के साथ डटकर सामना करते हुए अपने तथा अपने परिवार एवं समाज की सुरक्षा की उत्तरदायित्व लेने की जरूरत है।

अंत में, श्रीमती दीपिका सिंह पांडे ने प्रधानमंत्री जन-धन योजना एवं यूनिवर्र्सल बेसिक इनकम का जिक्र करते हुए बताया कि कैसे ये सरकारी प्रयास समय की माँग हैं। यूनिवर्र्सल बेसिक इनकम, जो कि बिना शर्त नकद हस्तांतरण के नागरिकों को प्रदान कर उन्हें वैश्विक महामारी के दौरान उनके न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा करने में कारगर सिद्ध हुआ है।

साथ ही, उन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य में चलाये जा रहे न्याय योजना कि तारीफ करते हुए कहा कि हमारी राज्य सरकार भी इस दिशा में प्रयासरत है। हालाँकि झारखंड सरकार वित्तीय बोझ वहन कर रही है, किन्तु अभी जनता को आर्थिक एवं चिकित्सीय सहायता पहुंचाना ही प्राथमिकता है। 

IMPRI संस्थान के अध्ययन आधृत प्रश्न “क्या प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) के तहत न्यूनतम राशि 2000 रु॰ प्रति माह दिया जाना, एक उत्तम विकल्प होगा?”- इसका उत्तर देते हुए कहा कि सरकार का यही ध्येय है कि इस आपदा की घड़ी में लोगों को उनके न्यूनतम जरूरतों को सबलता प्राप्त हो , जिसके लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली एवं नि:शुल्क टीकाकरण आदि माध्यमों से जनता को मदद प्रदान की जा रही है।

ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था

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झारखंड राज्य के एक अन्य विधायक डॉ कुशवाहा शशि भूषण मेहता ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए अपने निर्वाचन क्षेत्र एवं निजी तथा राज्य सरकार की कोविड-19 के संदर्भ में किए गए प्रयासों का विस्तारपूर्वक जानकारी साझा की। उन्होंने कहा- झारखंड राज्य की ग्रामीण आबादी का एक बड़ा हिस्सा आज भी जंगलों में वासित है, जिनके लिए आधारभूत स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ उठा पाना नि:संदेह एक बड़ी बाधा ही है। वे कोविड -19 की इस दूसरी लहर को पिछले की तुलना में भयावह बताते हुए कहा कि पहले यह केवल बड़े-बड़े शहरों में सीमित था, किन्तु अब यह देश के ग्रामीण इलाकों में बुरी तरह से विस्तारित है।

साथ ही, उन्होंने स्वास्थ्य व्यवस्था एवं अन्य संसाधनों आदि  की कमियों एवं बाधाओं को भी स्वीकार करते हुए अपने अनुभव साझा करते हुए टीकाकरण की महत्व एवं इसकी अनिवार्यता पर ज़ोर देते हुए –इसे ही अंतिम सुरक्षा कवच माना। इसी क्रम में, कोविड संबंधी तथा लॉकडाउन संबन्धित सभी सरकारी निर्देशों का अनुपालन करने, टीकाकरण के प्रति लोगों को जागरूक करने आदि की बात दोहरायी।

आगे उन्होंने ग्रामीण इलाकों में अप्रशिक्षित या छोला-छाप डॉक्टरों की समस्या को उजागर करते हुए कहा कि इस संकटमय परिस्थिति में उनकी भूमिका एवं प्रयास सराहनीय है क्योंकि ये ही ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था को कई हद तक संभालें हुए हैं, अत: इन्हें जल्द उचित प्रशिक्षण देकर सशक्त करने एवं मान्यता प्रदान कर इनके सेवाओं व अनुभवों का लाभ प्राप्त करने की आवश्यकता है।

इसके अलावे, माननीय विधायक ने कोविड की अनिश्चितता का हवाला देते हुए चिंता जाहिर कि कैसे इस वैश्विक समस्या ने शिक्षा व्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित करते हुए एक पूरी पीढ़ी को विकास के पिछले पायदान पर ढ़केल दिया, जो आने वाले समय में सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती साबित होगी। साथ ही, मानवीय जीवन से जुड़ें हर गतिविधियों को दूसरी लहर ने एक बार फिर चोट पहुंचायी है जैसे कि कृषि, सार्वजनिक वितरण प्रणाली के दुरुपयोग की समस्या आदि।

साथ ही, उन्होंने लोगों को कोविड एवं अन्य रोगों के लक्षणों को लेकर भ्रम दूर करने की दिशा में जागरूकता प्राप्त कर जनहानि से बचने की सलाह दी। अंत में, उन्होंने कहा कि यदि देश को कोरोना मुक्त करना है तो सुरक्षा कवच रूपी “टीकाकरण अभियान” के प्रति जागरूकता के साथ सख्ती का पालन कराना होगा। साथ ही, विधायक फ़ंड के उपयोग के सवाल का जवाब देते हुए जमीनी हकीकत एवं समस्याओं से रूबरू कराया और इस फ़ंड से जनता का सहयोग करने की निरंतर प्रतिबद्धता दर्शायी। इसी क्रम में, उन्होंने ग्रामीण स्तर पर स्वास्थ्य सुविधाओं को सुदृढ़ता प्रदान करने की दिशा में वे सिविल–सर्जन से समन्वय स्थापित कर रहे हैं।

सामाजिक विमुखता

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डॉ अनामिका प्रियदर्शिनी(लीड रिसर्च (बिहार), सेंटर फॉर कैटालीज़िंग चेंज) ने मुख्य तौर पर बिहार राज्य की कोविड की दूसरी लहर को अत्यंत भयावह बताते हुए कहा कि पिछले साल की तुलना में मौत के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। फरवरी- मार्च 2021 तक सभी कोविड को लेकर आश्वस्त हो गए थे कि अब यह खत्म ही होने वाला है, किन्तु इस वैश्विक महामारी ने दूसरे चरण में अपना रौद्र रूप प्रदर्शित किया और एक बार फिर बड़े पैमाने पर प्रवासी श्रमिकों के समक्ष जीविकोपार्जन का सवाल खड़ा कार दिया।

ज्ञातव्य है कि प्रवासी श्रमिकों का आंतरिक पलायन मुख्य रूप से देश के बिहार, झाररखंड तथा उत्तर प्रदेश(कुल 37%) राज्यों से ही रहा है, जिसमें बिहार के प्रवासी श्रमिकों का दूसरा स्थान आता है। हालाँकि कोविड के पहले चरण के मुक़ाबले इस चरण में सामाजिक विमुखता (Aversion) कम पैमाने पर देखी जा रही क्योंकि संक्रमण की दर यकायक बढ़ी है।

अंत में, इस लहर की कई अन्य पहलुओं को उजागर करते हुए- कोविड से उत्पन्न सामाजिक दुर्दशा एवं बिहार सरकार के प्रयासों व असंवेदनशीलता( जैसे कि – स्वास्थ्य कर्मियों की रिक्त पद संबंधी समस्या,  टेस्टिंग एवं टीकाकरण को लेकर सुस्त प्रक्रिया एवं लॉकडाउन का राज्य भर में सख्ती से अनुपालन न कराया जाना) कई  आदि समस्याओं पर भी कटाक्ष किया।  

सामूहिक प्रतिबद्धता

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डॉ गुरजीत सिंह (राज्य समन्वयक,सामाजिक अंकेक्षण इकाई, झारखंड) ने विशेषत: झारखंड राज्य में सरकार के इलाज के प्रयासों को सराहना करते हुए कहा कि कोविड की दूसरी लहर के ज़ोर पकड़ने का एक महत्वपूर्ण कारण यह भी रहा कि कोविड रोकथाम को लेकर सरकारी प्रयास में शिथिलता रही। इस संदर्भ में, कोविड संबन्धित उचित व्यवहार अपनाने की नितांत आवश्यकता है, जिसके लिए ग्रामीण स्तर से ही नागरिकों को जागरूक किया जाना अपरिहार्य है।

इस क्रम में, पंचायत, प्रशासन एवं नागरिक सहभागिता के सामूहिक प्रतिबद्धता का होना जरूरी है ताकि कोरोना के इस दूसरे लहर में उत्पन्न ग्रामीण समस्याओं(मानसिक स्वास्थ्य, घरेलू हिंसा, अनाथ बच्चों की समस्या एवं मनरेगा के अंतर्गत रोजगार के स्थायित्व संबंधी आदि )  का समाधान एक उचित रणनीति के तहत स्थानीय स्तर पर ही निवारित की जा सकें। 

साथ ही, उन्होंने कोविड संबंधी उचित व्यवहार शैली अपनाने की दिशा में सुझाव देते हुए कहा कि ऐसे वक़्त में स्वयंसेवकों की भूमिका सुनिश्चित किया जाना एक असरकारक कदम होगा। इसी क्रम में, होम – आइसोलेशन में रह लोगों को उचित गाइडलाइन का अनुपालन किया जाना जरूरी है। इसके अलावा, नागरिकों द्वारा कोविड-19 के लक्षणों को बिना देरी के पहचान करते हुए तथा सरकार द्वारा टेस्टिंग की रफ्तार को बढ़ाकर संक्रमण दर के सही आंकड़ें प्राप्त कर उस दिशा चिकित्सीय उपचार किया जाना प्राथमिकता होनी चाहिए। 

शिक्षा एवं स्वास्थ्य

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डॉ शरद कुमारी (स्टेट प्रोग्राम मैनेजर , एक्शन ऐड एसोसिएशन, बिहार एंड झारखंड) ने इस चर्चा के अंतिम चरण का बड़ा ही सार्थक समापन करते हुए दोनों राज्यों की कोविड 19 की दूसरी लहर से प्रभावित ग्रामीण वास्तविकताओं का एक अत्यंत ही स्याह पक्ष प्रस्तुत करते हुए कई पहलुओं को साझा किया। इस लहर ने नि:संदेह पुन: श्रमिक वर्ग के आगे असमंजस की स्थिति उत्पन्न कर दी है। खाद्य सुरक्षा एवं राशन-कार्ड को लेकर हेरा-फेरी के मामले उजागर हुए हैं।

इस लहर ने दोनों राज्यों के चिकित्सीय व्यवस्था को पोल खोल दी, जिसका परिणाम यह हुआ कि राजधानी के अस्पतालों पर अत्याधिक भार रहा। साथ ही, इस संकट की परिस्थिति में भी कुछ अमानवीय प्रकरणों के दर्शन हुए जैसे कि- सामान्य एवं कोविड संबंधी दवाओं  आदि की बड़े पैमाने पर जमाखोरी व कालाबाज़ारी देखी गयी।

आगे, डॉ कुमारी ने यह कहते हुए चिंता जाहिर की कि हमारे देश की विडंबना है कि मानव विकास के बुनियाद तय करने वाले मुख्य कारक “शिक्षा एवं स्वास्थ्य” पर बहुत कम बजट आवंटित किए जाते हैं। ग्रामीण परिवारों के संदर्भ में कई रूपों के समस्याओं देखने को मिले हैं जैसे कि कोविड की दूसरी लहर की अप्रत्याशित मामलों ने सयुंक्त परिवारों के समक्ष होम- आइसोलोशन की विफलता को उजागर किया है।

साथ ही, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में अबतक कोविड को लेकर व्यवस्था का अभाव  है, जिसके कारण उन्हें शहरी चिकित्सा केन्द्रों का रुख लेना पड़ रहा और वहाँ उन्हें इलाज़ के नाम पर ठगा जा रहा। इस तरह से ग्रामीणों का हर तरह से आर्थिक एवं मानसिक दोहन भी हो रहा है। साथ ही, समाज के कुछ दबंग वर्गों द्वारा भी दलित समुदाय पर तरह-तरह से दबाव बनाकर उन्हें टीकाकरण से दूर करने का यथा संभव कार्य भी किया गया, ऐसी स्थिति में कोविड संबंधी व्यवहार को लेकर यह कहना कठिन ही है कि यह सही मायने में सामाजिक स्तर पर कितना सफल होगा?

साथ ही उन्होंने कहा कि कोविड तथा टीकाकरण से संलग्न मुद्दों को लेकर जागरूकता की दिशा में जन प्रतिनिधियों, सिविल सोसाइटी एवं जन- संगठनों आदि की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण जान पड़ती है क्योंकि इनकी समाज में आसानी से पहुँच होती, अत: इन्हें भी अपने सोचने व कार्य करने के तरीके में बदलाव लाने की जरूरत है।

अपने वक्तव्य में उन्होंने अन्य सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक एवं मानसिक पहलुओं पर बात करते हुए कई सुझाव भी दिये, जैसे कि- बच्चों की मानसिक व भटकाव की स्थिति ने अभिभावकों के समक्ष चुनौती खड़ी कर दी है। आगे तीसरी लहर की आशंका को ध्यान रखते हुए कहा कि अभी से इसके लिए हमें रणनीति बनाकर कोविड संबंधी उचित व्यवहार शैली पर काम करना जरूरी है।

इसके अलावा, बिहार एवं झारखंड दोनों राज्यों को आर्थिक स्थायित्व प्रदान करने की दिशा में लंबी रणनीति के तहत नीतिगत फैसले लेने की नितांत आवश्यकता है, जैसे कि सरकार द्वारा ही यह सुनिश्चित किया जाए कि स्थानीय संसाधन के आधार पर ही उद्योग-धंधे को वे कैसे विकसित करें ताकि आमुख राज्यों के नागरिकों के अधिकारों को संरक्षण प्रदान कर गरिमापूर्ण जीवन का आधार तैयार किया जा सकें।

आगे उन्होंने भी ग्रामीण गैर- पेशेवर चिकित्सा कर्मियों को प्रशिक्षित किए जाने एवं उनका लाभ लेने की बात उठायी। साथ ही, हाल में गंगा नदी में मिले लाशों के बारे में एक विश्लेषणात्मक रहस्योद्घाटन करते हुए “सामाजिक प्रथा, निर्धनता एवं जागरुकता का अभाव आदि” पहलुओं का विवरण दिया। इसी प्रकार, कोविड के इस  काल ने दाह- संस्कार से जुड़ें सामाजिक कर्तव्यों का निर्वहन कर रही स्त्रियों  ने पितृसत्ता के स्वार्थी स्वभाव के दंश को भी झेला। अंत में , उन्होंने अपने संस्था के द्वारा किए जा रहे योगदान का जिक्र करते हुए अपनी बात समाप्त किया।

पावती: प्रियंका इम्प्री में एक रिसर्च इंटर्न हैं और वर्तमान में चिन्मय विश्वविद्यापीठ, कोच्चि, केरल से एमए (पीपीजी) कोर्स कर रही हैं।

यूट्यूब वीडियो ग्रामीण वास्तविकताएं | भारतीय गांवों में दूसरी लहर से निपटने में बिहार और झारखंड के चिकित्सकों के अनुभव

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  • IMPRI

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